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संगीतकार हेमंत कुमार


            हिंदी सिनेमा जगत के महान पार्श्वगायक, संगीतकार, और फिल्म निर्माता श्री. हेमंत कुमारजी के गीत आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते है। वैसे उनका पूरा नाम हेमंत कुमुखोपाध्याय था, लेकिन इस फिल्मी दुनिया में वे '' हेमंत दा ''के नाम से विख्यात थे। उन्होंने बांगला भाषा के अनेक गैर - फ़िल्मी अल्बम को अपने सुरों में पिरोया था और अपने संगीत निर्देशन से उन गीतों को तराशा था। श्री. हेमंत कुमारजी केवल गीत, संगीत, के माहिर ही नहीं थे, बल्कि वे एक बेहतरीन फिल्म निर्माता भी थे।

             ''राही तू रुक मत जाना ''  के श्री. हेमंत कुमारजी ने बंगाली, मराठी, हिंदी, गुजराती, ओड़िया, आसामिया, तमिल, पंजाबी, भोजपुरी, कोंकणी आदि भारतीय भाषाओं के गीतों को अपनी मधुर आवाज प्रदान की है। उन्होंने सं. 1989 में मृणाल सेन के निर्देशन में एक बंगला फिल्म '' नील आकाशेर नीचे '' का निर्माण भी किया था। इस फिल्म को ' राष्ट्रपति स्वर्ण पदक प्राप्त हुआ था। उस दौर में श्री. हेमंत कुमारजी को उत्तम कुमार की आवाज का पर्याय माना जाता था। 

             श्री. हेमंत कुमार मुखोपाध्यायजी का जन्म 16 जून 1920 में अपने ननिहाल वाराणसी में हुआ था। उनके नाना उस जमाने के प्रसिद्ध फिजिशियन थे। उनका परिवार मूलतः पश्चिम बंगाल के बहारु से था। सं. 1900 के प्रारम्भ में उनका परिवार कलकत्ता आकर बस गया था।

            श्री. हेमंत कुमारजी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा नसीरुद्दीन स्कूल से आरम्भ की थी। उन्होंने भवानीपोर के मित्रा इंस्टीट्यूशन स्कूल में दाखिला लिया। 12 वीं की परीक्षा पास कर जादवपुर विश्वविद्यालय में प्रवेश लेकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई आरम्भ की। परन्तु कुछ ही समय पश्चात संगीत प्रेम के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ दी। 

            इसी संगीत प्रेम के चलते श्री. हेमंत दा ने अपने मित्र सुभाष मुखोपाध्याय के प्रभाव से अपना प्रथम गीत सं. 1935 में ऑल इंडिया रेडियो पर रिकॉर्ड करवाया। जबकि इस दौरान उनकी आयु मात्र तेरह वर्ष की थी। 

            सं. 1937 में श्री. हेमंत दा ने कोलंबिया लेबल के अंतर्गत अपना पहला ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड बनाया [ डिस्क ] इस डिस्क में '' जानिते जैदी गो तुमि '' तथा '' बालो गो बालो '' गीत थे। इन गीतों को नरेश भट्टाचार्य ने लिखा था। इसके पश्चात लगातार ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया के द्वारा गैर - फिल्मी गानों का सिलसिला सं. 1948 तक चलता रहा। 

            श्री. हेमंत दा ने बाकायदा उस्ताद फ़ैयाज़ खान से संगीत का पाठ पढ़ा था। उन्होंने अपने कॅरियर का पहला प्ले - बैक सं. 1941 में बनी बंगाली फिल्म '' नेमाई संन्यास '' के लिए किया था। यहीं से उन्हें बंगाली फिल्मों में गीत गाने के लिए अवसर मिलने लगे।

                                                    

                                                    
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फिल्म '' निमाई सन्यास

            श्री. हेमंत दा ने संगीत के क्षेत्र में आने से पहले लेखन के क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाई थी। उन्होंने एक बंगाली पत्रिका '' देश '' में अपनी एक लघु कहानी प्रकाशित की थी। उन्हें तो बस, संगीत की दुनिया में अधिक रूचि थी। इसी कारण उन्होंने सं. 1930 से पूर्णतः संगीत की दुनिया की ओर रुख किया। 

             उन्होंने प्रथम हिंदी गीत सं. 1944 में फिल्म '' इरादा '' में पंडित अमरनाथ के संगीत निर्देशन में गाया था। श्री. हेमंत दा बतौर संगीत निर्देशन एक बंगाली फिल्म '' अभियात्री '' को सं. 1947 में दिया था। सं. 1940 के मध्य में श्री. हेमंत दा ने मुंबई की ओर रुख किया था। यहाँ पर उन्होंने इंडियन पीपल्स थिएटर एसोसिएशन के सक्रीय सदस्य [ इप्टा ] बने। यहीं पर उनकी मुलाक़ात गीतकार एवं संगीतकार श्री. सलिल चौधरी से हुई थी। 

            बंगाली फिल्मों के निर्देशक श्री. हेमंत गुप्ता मुंबई चले गए थे। उन्होंने श्री. हेमंत दा को फिल्मिस्तान के बैनर तले निर्माणाधीन हिंदी फिल्म '' आनंद मठ '' के लिए संगीत निर्देशन का अवसर प्रदान किया। श्री. हेमंत गुप्ता ने दिए हुए अवसर का स्वीकार करते हुए सं. 1951 में फिल्मिस्तान से जुड़ गए। एक वर्ष पश्चात बनी '' आनंद मठ'' फिल्म का संगीत उतना लोकप्रिय नहीं हुआ।  इस फिल्म के पश्चात उन्होंने फिल्मिस्तान की फिल्मों को संगीत दिया है। 

                                                                                
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फिल्म '' आनंद मठ '' का पोस्टर

       
           सं. 1971 में श्री. हेमंत कुमार ने हॉलीवुड के फिल्म निर्देशक कोनराड रूक्स के निमंत्रण पर कोनराड'स के '' सिद्धार्थ '' में ' ओ नदी रे ' यह गीत गाया, जिसका संगीत उन्होंने स्वयं दिया था। श्री. हेमंत कुमार ही ऐसे एकमेव भारतीय पार्श्वगायक थे, जिन्हे यू. एस. सरकार ने अमेरिका के मेरीलैंड स्थित बाल्टीमोर में नागरिकता देकर सम्मानित किया है।                  सं. 1987 में पद्मभूषण के लिए नामांकित करने का श्री. हेमंत दा को प्रस्ताव मिला था, परन्तु उन्होंने नामांकित करने से मना कर दिया। श्री. हेमंत दा के संगीत की दुनिया में 50 वर्ष पूर्ण करने पर कलकत्ता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में उनके चाहनेवालों और प्रशंसकों ने एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया था, जिसमे स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने श्री. हेमंत दा एक स्मृति चिन्ह देकर सन्मानित किया था।        

            श्री. हेमंत कुमारजी ने गीतांजलि प्रोडक्शंस के बैनर तले कई हिंदी फिल्मों का निर्माण किया जिसमे '' बीस साल बाद - 1963 '', '' कोहरा - 1964'', '' बीबी और मकान - 1966 '', '' फ़रार - 1965 '', '' राहगीर - 1969 '', तथा '' ख़ामोशी - 1970 ''

पुरस्कारों में :-  '' स्वरलिपि 1962 '', '' पलातक - 1964  '', '' मिनीहर -1967 '', '' बालिका बधु - 1968 '', '' फलेवरी - 1975  '',  '' भालोबासा भालोबासा - 1968 '', '' पथभोला - 1987 '', आगोमन - 1988 '' आदि शामिल है। इसके अतिरिक्त '' विश्व भारती विश्वविद्यालय द्वारा श्री.हेमंत दा को डी. लिट्. से सन्मानित किया गया है। उन्हें सं. 1986 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ है। 

              श्री. हेमंत दा, माइकल मधुसूदन अवार्ड लेने सितम्बर 1989 में बांग्ला देश के ढाका गए थे। उस दौरान उस कार्यक्रम से लौटते हुए उन्हें दूसरा हार्ट अटैक का आघात हुआ। इस आघात को वे सह नहीं सके और कलकत्ता के निजी अस्पताल में 26 सितम्बर 1989 की रात्रि में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।