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गायक मोहम्मद रफ़ी

   

                   31 जुलाई 1980 का वह संगीत की दुनिया का दुःखद दिवस सारी फिल्मी दुनिया, संगीत प्रेमी , एवं आवाज़ के पारखी अपना दुःखी मन लिए महान गायक मोहम्मद रफ़ी के निधन पर आंसू बहाये जा रहे थे। जिसने फिल्मी दुनिया में अपने जीवन के अनेक वर्ष बिताते हुए कई अनमोल गीतों को अपने स्वर में पिरोया था। 

               नके निधन पर जाने माने संगीतकार श्री. नौशाद अली ने अपने एक शोक सन्देश में कहा ---
                '' कहता है कोई दिल गया दिलबर चला गया 
                  साहिल पुकारता समंदर चला गया 
                 लेकिन जो बात सच है , वो कहता नहीं कोई 
                 दुनिया से मौसिक़ी का पयम्बर चला गया।

                                                                       
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नौशाद अली और मोहम्मद रफ़ी गाने का रियाज़ करते हुए

 स्वर्गीय मोहम्मद रफ़ीजी ने हर अंदाज में गाया था जैसे शास्त्रीय संगीत, ग़ज़ल हो या कव्वाली इसके आलावा प्रणयगीत, देशप्रेम एवं क्रांति की ज्वाला भरे गीतों को उन्होंने उतना ही बखूबी गाया था। वे जब तक जीवित रहे अपनी आवाज से न केवल मनोरंजन के लिए काम करते रहे बल्कि मानव जाती की सेवा में भी सक्रिय योगदान दिया है। जिस तरह उनकी कला  बेदाग़ थी, उसी प्रकार उनका जीवन भी बेदाग़ था। 
                 हान गायक मोहम्मद रफ़ीजी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर के निकट कोटला सुलतान सिंह में हुआ था। उन्हें गाने का शौक तो बचपन से ही था। जब रफ़ीजी सात वर्ष के हुए थे तब उनका परिवार रोजगार के कारण लाहौर आ गया था। रफ़ीजी ने बाकायदा उस्ताद खान अब्दुल वहीदसाहब से गायन की शिक्षा हासिल की थी। 
                 वैसे इनके परिवार का संगीत से कोई सरोकार नहीं था। जब रफ़ीजी छोटे थे तब इनके बड़े भाई की नाई की दुकान थी रफ़ीजी काफी समय उसी दुकान में गुजारते थे। कहते है कि उनकी दूकान के सामने से गाते हुए गुजरनेवाले  एक फ़क़ीर का पीछा किया करते थे। उसकी आवाज रफ़ीजी को पसंद आती थी और उसकी वे नक़ल किया करते थे। 
                   नकी नक़ल की गहराई देख लोगों को उनकी आवाज पसंद आने लगी।  लोग उनके गानों की प्रशंसा करने लगे वहीं से उनको स्थानीय ख्याति प्राप्त होने लगी।  
              ह देश है वीर जवानों का ' के गायक श्री. मोहम्मद रफ़ीजी ने सं. 1940 में पहली बार लाहौर में एक पंजाबी फिल्म '' गुलबलोच '' में संगीतकार श्याम सुन्दर के संगीत निर्देशन में ' सोनिये, हारिये नी, तेरी याद ने बहुत सताया ' यह गीत गाया था। 
                    ह गीत इतना लोकप्रिय रहा कि संगीतकार श्याम सुन्दर के निर्देशन में ही सं. 1944 में मोहमद रफ़ीजी ने पहली बार हिंदी फिल्म '' गांव की गोरी '' में गीत गाया और उन्होंने संगीत की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित करना प्रारम्भ कर दिए। उन दिनों नजर स्वर्णलता द्वारा अभिनीत फिल्म '' लैला मजनू '' में रफ़ीजी ने गीत गाये जो सभी लोकप्रिय हुए। इसी फिल्म में उन्होंने एक छोटी -सी भूमिका भी निभाई थी।
                     मोहम्मद रफ़ीजी अपने गायन की  मंजिल पर कदम दर कदम बढ़ाते ही जा रहे थे। उन दिनों शौकत हुसैन की फिल्म '' जुगनू '' में गायन के साथ अभिनय के रूप से भी सबको अवगत कराया था। ' याद दिलाने को इक इश्क की दुनिया छोड़ गये ' दिलीप कुमार के साथ गाया , वहीं इसी फिल्म में उन्होंने नूरजहां के साथ ' यहां बदला वफ़ा का बेवफाई के सिवा क्या है ' यह युगल गीत गाकर अपनी लोकप्रियता दर्ज कर दी।
                       फ़ीजी की किस्मत करवट बदल रही थी। संगीत की दुनिया में एक नया सितारा चमकने के लिए समय की प्रतीक्षा में अच्छा प्ले बैक पाने उत्सुक था, वहीं सं. 1948 में वह अवसर भी आ गया। महात्मा गाँधी के जीवन पर आधारित अमर गीत ' सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापूजी की अमर कहानी ' जिसे राजेंद्र कृष्ण ने लिखा था। रफ़ीजी ने अपनी सुमधुर आवाज के जरिये उस गीत को सच ही अमर कहानी बना दिया। 
                       मोहम्मद रफ़ीजी का संगीत सफर यूँ आसान भी नहीं था , कारण मुकेश , हेमंतकुमार, तलत महमूद, सुरैया एवं लता मंगेशकर जैसे प्रतिभा सम्पन्न गायक कलाकार मौजूद थे। नौशाद के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म ' पहले आप ' में  'हिन्दोस्तां के हम है हिन्दोस्तां  हमारा ' इस कोरस गीत से रफ़ीजी ने उनके साथ गाना प्रारम्भ किया।
                      ब सं. 1958 में फिल्म '' रागिणी '' भारत भूषण को लेकर बनाई जा रही थी तो किसी कारण वश भारत भूषण फिल्म से बाहर हो गए और उनकी जगह किशोर कुमार को लिया गया। एक गायक - अभिनेता को उस फिल्म में रफ़ीजी ने अपनी आवाज प्रदान की। 
                      देशभक्ति गीत हो या भजन रफ़ीजी ने हमेशा ही गीतों को न्याय दिया है इसका उदाहरण सं. 1934 में बनी फिल्म '' संत तुलसीदास '' का ' मोहे अपनी शरण में ले लो राम ', 5 अक्टूबर 1952 में बनी फिल्म '' बैज्जु बावरा ''  का यह गीत ' इन्साफ का मंदिर है ये भगवान का घर है ',7 दिसम्बर 1956 की बनी फिल्म '' बसंत बहार '' ' दुनिया भाये मुझे अब तो बुला ले ', एवं ' बड़ी देर भई ', 28 अगस्त 1970 की फिल्म '' गोपी '' का गीत ' सुख के सब साथी, दुःख में न कोय ' उनकी उच्चकोटि की आवाज से इन भजनों को कैसे भुलाया जा सकता है ? 
                       सं. 1947 में भारत अपनी आजादी प्राप्त कर चूका था। रफ़ीजी ही उस दौर के ऐसे एकमात्र गायक थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री निवास पर गीत गाये थे। जब आज़ादी के दौर की बात निकली है तो - रफ़ीजी के देशभक्ति गीतों में 27 मार्च 1964 की फिल्म '' लीडर '' का गीत ' अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं। ' यह गीत संगीतकार रोशन के संगीत निर्देशन में दिलीप कुमार के लिए गाया था। इसके आलावा 19 फेब्रुवारी 1957 की फिल्म '' प्यासा ''का गीत ' ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया' 15 अगस्त 1957 की फिल्म '' नया दौर '' का यह गीत ' यह देश है वीर जवानो का ', सं. 1964 की फिल्म '' हकीकत '' का गीत ' कर चले हम फ़िदा जानो तन साथियों ' एवं सं. 1965 की फिल्म '' सिकंदर - ए - आजम '' का गीत ' जहाँ डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा ,वो भारत देश है मेरा ' इन गीतों को तो आज भी राष्ट्रिय पर्व पर अवश्य बजाया जाता है। 
                           '' यह देश है वीर जवानो का '' को अपनी मधुर आवाज प्रदान करने वाले रफ़ीजी ने इन गीतों के आलावा प्रणय गीत एवं जुदाई गीतों में भी अपनी आवाज का जादू बरकरार रखा था। स्वर्गीय मुकेशजी राजकपूर की आवाज का पर्याय थे तो रफ़ीजी शम्मी कपूर के, उनके लिए यादगार गीतों में सं. 1968 की फिल्म '' ब्रह्मचारी '' का गीत ' दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर ', सं. 1962 की फिल्म '' प्रोफेसर '' का गीत ' ए गुलबदन, फूलों की महक काँटों की चुभन', सं. 1998 की फिल्म '' जब प्यार किसी से होता है ''  का गीत तेरी झुल्फों से जुदाई, तो नहीं मांगी थी ', सं. 1999 की फिल्म '' जानवर ''  का गीत ' ओ तुमसे अच्छा कौन है ' सं. 1968 की फिल्म '' कन्यादान ''  का गीत ' लिखे जो खत तुझे ' जैसे गीतों को गाकर रफ़ीजी ने शम्मी कपूर की लोकप्रियता में अपना अमुल्य योगदान दिया है।  
                           मोहम्मद रफ़ीजी ने अपने फिल्मी जीवन में हिंदी फिल्मों के आलावा अन्य भाषाओं में भी गीत गाये है। विशेषकर उन्होंने मराठी फिल्मों के एक ही संगीतकार श्री. श्रीकांत ठाकरे के संगीत निर्देशन में मराठी गीत गाये जो सभी लोकप्रिय हुए। 
                            रफ़ीजी की आवाज ने अपने आगामी दिनों में कई गायकों को प्रेरित किया है। इनमे सोनू निगम, मुहम्मद अज़ीज़, तथा उदित नारायण उल्लेखनीय है - यद्यपि इन्होने अब अपनी अलग पहिचान बना ली है। रफ़ीजी ने सं. 1940 के दशक से आरम्भ कर सं. 1980 तक उन्होंने कुल 26 ,000 गाने गाये है। इनमे हिंदी गानों के अतिरिक्त ग़ज़ल, भजन, देशभक्ति गीत, के अलावा कव्वाली आदि शामिल है। 
                       रफ़ी के मराठी गानों में - '' शोधिसी मानवा राऊळी मंदिरा '', '' हे मना आज कोणी बघ तुला साद घाली'', '' है छंद जीवाला लावी पीसे'',  '' विरले गीत कसे'' और एक कोळी गीत  ''अग पोरी संभाल '' शामिल है। उन्होंने मराठी के अतिरिक्त तेलगु और आसामिया में गीत गाये है। 
                        24 दिसम्बर 2017 को मोहम्मद रफ़ीजी के 93 वें जन्मदिवस पर गूगल ने उन्हें सम्मानित करते हुए उनकी याद में गूगल डूडल बनाकर उनके गीतों को और उनकी यादों को समर्पित किया तो भारत सरकार ने उन्हें सं. 1965 में '' पद्मश्री '' से सन्मानित किया है।


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