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लोकनायक जयप्रकाश  नारायण


                ''जीवन-दान का आंदोलन उठाकर हमने अभी जीवन-शुद्धि की साधना में पहला ही कदम बढ़ाया है। अभी तो हमें बहुत दूर जाना है। हमें अहंकारशून्य होकर काम करना होगा। जीवन दान देकर भी जो अपने को किसी विशिष्ट जाती के समझे और कहें कि ' हम तो जीवन दानी है ' तो उनका यह कहना अहंकार ही होगा। जीवन -दान का गर्व भी नहीं होना चाहिए। पहले भी ऐसे लोग थे , जिन्होंने अपना सारा जीवन भूदान यज्ञ के कार्य में देने का संकलप किया था। इसलिए अब हम लोगो ने जो जीवन दान दिया उसपर हंकार करने का हमे कोई अधिकार नहीं है। अहंकार - रहित हम इस बात को समझे कि हम जो कर रहे है , ईश्वर को अर्पित कर रहे है। वास्तव में हम उसकी वस्तु उसी को सौंप रहे है। उसी की पूजा में जीवन लगाने का हमने निश्चय किया है , इस वृत्ति से कार्य करना होगा। रास्ते में बाधाएँ आएँगी , तकलीफे आएँगी , प्रलोभन भी आएंगे , पर उनसे हमारी परीक्षा ही होगी। "   
                समाजवाद के मौलिक सिद्धांतों पर अनेक लेख लिखनेवाले तथा समाजवादी दल के सैद्धांतिक पक्ष के प्रतिनिधि श्री. जयप्रकाश नारायण जी ने उक्ताशय के उद्गार अपनी एक पुस्तक में लिखे है। 11 अक्टूबर 1902 में जन्मे श्री. जयप्रकाशजी को कौन नहीं जनता , विशेषकर उन्हें सं. 1970 में इंदिरा गाँधी के विरूद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए अधिक जाना जाता है। उन्होंने इंदिरा गाँधी को पद्चुत करने के लिए ' सम्पूर्ण क्रांति ' का आंदोलन चलाया था। अपनी समाजसेवा के लिए लोग उन्हें ' लोकनायक ' के नाम से ही सम्बोधित करते थे। 
                जयप्रकाश नारायणजी ने अपने विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेना शुरू किया था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद तथा गाँधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा द्वारा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए स्थापित किये गए बिहार विद्यापीठ में जयप्रकाश जी शामिल हो गए। अपनी उच्च शिक्षा के लिए वे सं. 1922 में अमेरिका गए , जहाँ पर उन्होंने 1922 - 1929 के बीच कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी बुरकली के विस्कॉन्सन यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र का अध्ययन किया। उन्होंने अमेरिका में महँगी पढाई के खर्चों को वहन करने के लिए खेतों , रेस्त्रां और कंपनियों में काम किया है। अपनी शिक्षा के दौरान वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होंने M. A.की डिग्री प्राप्त की।  उस दौरान उनकी माताजी का स्वास्थ ठीक न होने के कारण वे भारत लौट आये , इस कारण वे  पी. हेच. डी. नहीं कर पाएं।