लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल
लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल |
आज हम हमारे प्रधान मंत्रीजी श्री.नरेंद्र मोदीजी के अनेक भाषण या सम्भोधन सुनते है तब वे अपने आपको कभी प्रधानमंत्री नहीं कहते ना ही एक प्रधानमंत्री की तरह बर्ताव करते । वे सदा ही अपने आपको प्रधान सेवक ही मानते है। इसी कारण हर भारतीय उनके सामने नतमस्तक हो जाता है । उस समय हम हमारे लोह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेलजी को कैसे भूल सकते है।
सरदार पटेलजी भी सदा अपने आपको एक सिपाही या सेवक मानते थे । आजादी से पूर्व बारदोली के सत्याग्रह में किसानो को भाषण देते हुए उन्होंने कहा था - '' मिट्टी के बड़े घड़े से असंख्य ठीकरियां बनती है , फिर भी उनमे से एक ही ठीकरी मिट्टी के सारे घड़े को फोड़ने के लिए काफी होती है । घड़े से ठीकरी किसलिए डरे ? वह घड़े को अपने जैसी ठीकरियां बना सकती है । फूटने का डर किसी को रखना चाहिए तो उस घड़े को रखना है, ठीकरियों को क्या डर हो सकता है ? ''
भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी , भारत के प्रथम गृहमंत्री एवं उप प्रधानमंत्री श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी का जन्म गुजरात के नडियाद में एक गुर्जर कृषक परिवार में 31अक्टूबर 1875 को हुआ । उनके पिता श्री. झवेरभाई पटेल तथा माता लाडबा देवी के वे चौथी संतान थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा स्वाध्याय से ही हुई थी। अपनी उच्च शिक्षा के पश्चात उन्होंने लन्दन जाकर बैरिस्टर की पढ़ाई पूर्ण कर अहमदाबाद में वकालत आरम्भ की थी।
महात्मा गांधीजी के विचारों से प्रेरित पटेलजी ने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेना आरम्भ किया। उन्हें पहली सफलता खेड़ा संघर्ष से मिली। स्वतंत्रता आंदोलन के दरम्यान गुजरात का खेड़ा क्षेत्र सूखे की भयंकर चपेट में था। किसानो द्वारा अंग्रेज सरकार से कर में भारी छूट की मांग की जा रही थी। तब इस मांग को अँग्रेज सरकार ने अमान्य कर दिया था। उस समय सरदार पटेल एवं गांधीजी और अन्य नेताओं ने इन किसानो के आंदोलन का नेतृत्व किया था। उनके सामने आखिरकार अंग्रेज सरकार को झुकना पड़ा। इसके परिणाम स्वरुप उस वर्ष सरकार ने करों में राहत दी थी।
सं 1928 को गुजरात में एक प्रमुख किसान आंदोलन हुआ था, जिसे बारडोली सत्याग्रह से जाना जाता है। इस प्रमुख किसान आंदोलन का नेतृत्व श्री वल्लभ भाई पटेलजी ने किया था। तत्कालीन प्रांतीय सरकार ने किसानो के लगान में तीस प्रतिशत तक वृद्धि कर दी थी। तब श्री पटेलजी इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया था। आखिरकार सरकार को विवश होकर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया था।
जैसे यह आंदोलन सफल हुआ तो बारडोली की महिलाओं ने श्री वल्लभ भाई पटेलजी को ' सरदार ' की उपाधि से सन्मानित किया। महात्मा गांधीजी ने राष्ट्रिय स्वाधीनता संग्राम एवं किसान संघर्ष की व्याख्या करते हुए कहा था कि इस तरह का हर संघर्ष , हर कोशिश हमें स्वराज्य के करीब पहुँचाने ज्यादा सहायक सिद्ध हो सकते है।
वैसे हमारे प्रथम प्रधानमंत्री पंडित. नेहरू और उप प्रधानमन्त्रीजी श्री. सरदार पटेलजी के स्वभाव में जमीं आसमान का अंतर था। पंडित नेहरू प्रारम्भ से ही हटी स्वभाव के थे। दोनों ने ही इंग्लैंड जाकर बैरिस्टर की उपाधियाँ प्राप्त की थी। सरदार वल्लभ भाई पटेलजी ने इंग्लैंड से लौटकर वकालत करने लगे जिसमे उन्हें काफी सफलता मिली जबकि नेहरू उनसे बहुत पीछे थे। वंही बेरिस्टर के अध्ययन के समय भी श्री . पटेलजी ने सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य के विद्यार्थिओं में सर्वप्रथम स्थान प्राप्त किया था।
नेहरू शास्त्रों के ज्ञाता थे जबकि श्री. पटेलजी शास्त्रों के पुजारी थे। उच्च शिक्षित होने के बावजूद पटेलजी में अहंकार नहीं था। इस संदर्भ में उन्होंने स्वयं कहा था कि - '' मैंने कला या विज्ञान के विशाल गगन में ऊँची उड़ाने नहीं भरी। मेरा विकास कच्ची झोपड़ियों में गरीब किसान के खेतों की भूमि और शहरों के गंदे मकानों में हुआ है । '' जबकि पंडित नेहरू को गांव की गन्दगी तथा देहाती जीवन से चिढ थी। नेहरू सदा ही अपनी स्वयं की प्रसिद्धि चाहते थे और समाजवादी प्रधानमंत्री बननेकी लालसा पालते थे। वहीं श्री . पटेलजी अपने कार्य एवं कर्तव्य में ही विश्वास रखते थे।
नेहरूजी की हठधर्मिता हमें आजादी के पश्चात भी देखने मिलती है। स्वतंत्र भारत का निर्माण हो चूका था। देश की अधिकांश प्रांतीय कांग्रेस समितियां श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी को ही प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थी। लेकिन नेहरूजी ने महात्मा गांधीजी पर दबाव बनाते हुए प्रधानमंत्री बनने की जिद की और उसपर पर अटल रहे। वैसे गांधीजी का झुकाव नेहरूजी की ओर था । इस कारण श्री . पटेलजी ने अपने आप को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर लिया। इसका एक कारण यह भी था की वे महात्मा गांधीजी का आदर करते थे। इस तरह अपने हट से नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और एक सच्चे कर्मवीर को गृहमंत्री का पद संभालना पड़ा।
श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी ने गृहमंत्री का पद तो ग्रहण कर लिया , यहाँ पर भी उन्होंने अपने कार्य की प्रथम प्रार्थमिकता के अंतर्गत देसी रियासतों को भारत में मिलाना रखा। पटेलजी ने आजादी से पूर्व ही श्री . वी . पी . मेनन के सहयोग से विभिन्न देसी राज्यों को भारत में मिलाने की पहल आरम्भ कर दी। उन दोनों ने देसी राजाओं को बहुत समझाया की उन्हें स्वायतत्ता देना संभव नहीं होगा।
उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरुप जम्मू एवं कश्मीर , जुनागड़ तथा हैदराबाद स्टेट को छोड़कर सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब पटेलजी ने जुनागड़ के नवाब के विरुद्ध सख्ती आरम्भ कर दी तो वह नवाब पाकिस्तान भाग गया और जुनागड़ का भी भारत में विलय संभव हो गया।
श्री . पटेलजी ने हैदराबाद स्टेट के निजाम मीर उस्मान अली खां से हैदराबाद का विलय करने कई बार चर्चा की परन्तु निजाम ने विलय करने से साफ़ इंकार कर दिया। इसी के परिणाम स्वरुप 13 सितम्बर 1948 को भारतीय फौजी अभियान ' ऑपरेशन पोलो ' आरम्भ किया गया। इस अभियान को पुलिस एक्शन के नाम से भी जाना जाता है। यह अभियान 17 सितम्बर तक पांच दिन चले अभियान के बाद निजाम के अरब कमांडर अल इदरुस ने जनरल चौधरी के सामने समर्पण कर दिया। इस तरह हैदराबाद स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया।
भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिंदा एवं महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक सोमनाथ मंदिर जिसका निर्माण चंद्रदेव ने किया था। इस ऐतिहासिक मंदिर की यह विशेषता है की यह 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप माना व जाना जाता है। यह ऐतिहासिक मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है।
इतिहास के अनुसार यह मंदिर वैभव शैली होने के कारण अनेक बार तोडा गया था। श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी ने वर्तमान भवन के पुनः निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात करवाया था। जिसे 1 दिसम्बर 1995 को भारत के राष्ट्रपति श्री . शंकर दयाल शर्माजी ने राष्ट्र को समर्पित किया था।
562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का आश्चर्य रचनेवाले श्री . सरदार पटेलजी की स्मृति में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल अन्तर-राष्ट्रिय हवाई अड्डा रखा गया और गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। इस के आलावा सं 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सन्मानित भी किया गया है।
नेहरूजी की हठधर्मिता हमें आजादी के पश्चात भी देखने मिलती है। स्वतंत्र भारत का निर्माण हो चूका था। देश की अधिकांश प्रांतीय कांग्रेस समितियां श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी को ही प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थी। लेकिन नेहरूजी ने महात्मा गांधीजी पर दबाव बनाते हुए प्रधानमंत्री बनने की जिद की और उसपर पर अटल रहे। वैसे गांधीजी का झुकाव नेहरूजी की ओर था । इस कारण श्री . पटेलजी ने अपने आप को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से अलग कर लिया। इसका एक कारण यह भी था की वे महात्मा गांधीजी का आदर करते थे। इस तरह अपने हट से नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और एक सच्चे कर्मवीर को गृहमंत्री का पद संभालना पड़ा।
श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी ने गृहमंत्री का पद तो ग्रहण कर लिया , यहाँ पर भी उन्होंने अपने कार्य की प्रथम प्रार्थमिकता के अंतर्गत देसी रियासतों को भारत में मिलाना रखा। पटेलजी ने आजादी से पूर्व ही श्री . वी . पी . मेनन के सहयोग से विभिन्न देसी राज्यों को भारत में मिलाने की पहल आरम्भ कर दी। उन दोनों ने देसी राजाओं को बहुत समझाया की उन्हें स्वायतत्ता देना संभव नहीं होगा।
उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरुप जम्मू एवं कश्मीर , जुनागड़ तथा हैदराबाद स्टेट को छोड़कर सभी रजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। जब पटेलजी ने जुनागड़ के नवाब के विरुद्ध सख्ती आरम्भ कर दी तो वह नवाब पाकिस्तान भाग गया और जुनागड़ का भी भारत में विलय संभव हो गया।
श्री . पटेलजी ने हैदराबाद स्टेट के निजाम मीर उस्मान अली खां से हैदराबाद का विलय करने कई बार चर्चा की परन्तु निजाम ने विलय करने से साफ़ इंकार कर दिया। इसी के परिणाम स्वरुप 13 सितम्बर 1948 को भारतीय फौजी अभियान ' ऑपरेशन पोलो ' आरम्भ किया गया। इस अभियान को पुलिस एक्शन के नाम से भी जाना जाता है। यह अभियान 17 सितम्बर तक पांच दिन चले अभियान के बाद निजाम के अरब कमांडर अल इदरुस ने जनरल चौधरी के सामने समर्पण कर दिया। इस तरह हैदराबाद स्वतंत्र भारत का हिस्सा बन गया।
भारतीय इतिहास तथा हिन्दुओं के चुनिंदा एवं महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक सोमनाथ मंदिर जिसका निर्माण चंद्रदेव ने किया था। इस ऐतिहासिक मंदिर की यह विशेषता है की यह 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप माना व जाना जाता है। यह ऐतिहासिक मंदिर गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र के वेरावल बंदरगाह में स्थित है।
सोमनाथ मंदिर |
इतिहास के अनुसार यह मंदिर वैभव शैली होने के कारण अनेक बार तोडा गया था। श्री . सरदार वल्लभ भाई पटेलजी ने वर्तमान भवन के पुनः निर्माण का आरम्भ भारत की स्वतंत्रता के पश्चात करवाया था। जिसे 1 दिसम्बर 1995 को भारत के राष्ट्रपति श्री . शंकर दयाल शर्माजी ने राष्ट्र को समर्पित किया था।
562 रियासतों का एकीकरण विश्व इतिहास का आश्चर्य रचनेवाले श्री . सरदार पटेलजी की स्मृति में अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण सरदार वल्लभ भाई पटेल अन्तर-राष्ट्रिय हवाई अड्डा रखा गया और गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है। इस के आलावा सं 1991 में मरणोपरांत भारत रत्न से सन्मानित भी किया गया है।
एकता की मूर्ति |
' एकता की मूर्ति ' रखा गया। यह विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति है , जिसकी लम्बाई 182 मीटर है।
हमारे प्रधानमंत्री जी ने सं . 2014 में भारतीय राजनितिक एकीकरण के लिए सरदार पटेलजी के योगदान को चिरस्थाई बनाय रखने के लिए उनकी जन्म तिथि 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस घोषित किया है।
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